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यो ह॒त्वाहि॒मरि॑णात्स॒प्त सिन्धू॒न्यो गा उ॒दाज॑दप॒धा ब॒लस्य॑। यो अश्म॑नोर॒न्तर॒ग्निं ज॒जान॑ सं॒वृक्स॒मत्सु॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥

English Transliteration

yo hatvāhim ariṇāt sapta sindhūn yo gā udājad apadhā valasya | yo aśmanor antar agniṁ jajāna saṁvṛk samatsu sa janāsa indraḥ ||

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Pad Path

यः। ह॒त्वा। अहि॑म्। अरि॑णात्। स॒प्त। सिन्धू॑न्। यः। गाः। उ॒त्ऽआज॑त्। अ॒प॒ऽधा। ब॒लस्य॑। यः। अश्म॑नोः। अ॒न्तः। अ॒ग्निम्। ज॒जान॑। स॒म्ऽवृक्। स॒मत्ऽसु॑। सः। ज॒ना॒सः॒। इन्द्रः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:12» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:7» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (जनासः) विद्वानो ! (यः) जो (अहिम्) मेघ को (हत्वा) मार (सप्त) सात प्रकार के (सिन्धून्) समुद्रों को वा नदियों को (अरिणात्) चलाता है (यः) जो (गाः) पृथिवियों को (उदाजत्) ऊपर प्रेरित करता अर्थात् एक के ऊपर एक को नियम से चला रहा (यः) जो (बलस्य) बल को (अपधा) धारण करनेवाला और जो (अश्मनः) पाषाणों वा मेघों के (अन्तः) बीच (अग्निम्) अग्नि को (जजान) उत्पन्न करता तथा (समत्सु) संग्रामो में (संवृक्) सब पदार्थों को अलग कराता है (सः) वह (इन्द्रः) इन्द्र नामक सूर्यलोक है यह जानना चाहिये ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो सूर्यलोक मेघ को वर्षाकर समुद्रों को भरता है, सब भूगोलों को अपने प्रति खैंचता है, अपनी किरणों से मेघ और समीपस्थ पाषाण के बीच ऊष्मा को उत्पन्न करता है वह अग्निरूप है, यह जानना चाहिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे जनासो योऽहिं हत्वा सप्त सिन्धूनरिणाद्यो गा उदाजद्यो बलस्यापधा योऽश्मनोरन्तरग्निं जजान समत्सु संवृगस्ति स इन्द्रोऽस्तीति वेद्यम् ॥३॥

Word-Meaning: - (यः) (हत्वा) (अहिम्) मेघम् (अरिणात्) गमयति सप्तविधान् (सिन्धून्) समुद्रान्नदीर्वा (यः) (गाः) पृथिवीः (उदाजत्) ऊर्ध्वं क्षिपति (अपधा) योऽपदधाति सः। अत्र सुपां सुलुगिति विभक्तेर्डादेशः। (बलस्य) (यः) (अश्मनोः) पाषाणयोर्मेघयोर्वा (अन्तः) मध्ये (अग्निम्) पावकम् (जजान) जनयति (संवृक्) यः सम्यग्वर्जयति सः (समत्सु) संग्रामेषु (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्या यः सूर्यलोको मेघं वर्षयित्वा समुद्रान् भरति सर्वान् भूगोलान् स्वं प्रत्याकर्षति स्वकिरणैर्मेघस्य सन्निहितस्य पाषाणस्य मध्ये उष्णताञ्जनयति सोऽग्निरस्तीति वेद्यम् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जो सूर्यलोक मेघांची वृष्टी करून समुद्राला समृद्ध करतो व सर्व भूगोलाला आपल्याकडे आकर्षित करतो, आपल्या किरणांनी मेघ व जवळ असलेल्या पाषाणामध्ये उष्मा उत्पन्न करतो, तो अग्निरूप आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥ ३ ॥